तेरी मिट्टी में मिल जावाँ

तलवारों पे सर वार दिए
अंगारों में जिस्म जलाया है |
तब जा के कहीं हमने सर पे
ये केसरी रंग सजाया है ||

ऐ मेरी ज़मीं अफसोस नहीं
जो तेरे लिए सौ दर्द सहे |
महफूज़ रहे तेरी आन सदा
चाहे जान मेरी ये रहे न रहे ||

ऐ मेरी ज़मीं महबूब मेरी
मेरी नस-नस में तेरा इश्क बहे |
फीका ना पड़े कभी रंग तेरा
जिस्मों से निकल के खून कहे ||

तेरी मिट्टी में मिल जावाँ
गुल बणके मैं खिल जावाँ 
इतनी सी है दिल की आरज़ू |
तेरी नदियों में बह जावाँ
तेरे खेतों में लहरावाँ
इतनी सी है दिल की आरज़ू ||

सरसों से भरे खलिहान मेरे
जहाँ झूम के भंगड़ा पा न सका
आबाद रहे वो गाँव मेरा |
जहाँ लौट के वापस जा न सका
ओ वतना वे, मेरे वतना वे |
तेरा-मेरा प्यार निराला था
कुर्बान हुआ तेरी अस्मत पे
मैं कितना नसीबों वाला था ||
तेरी मिट्टी में मिल जावाँ... ||
केसरी... ||

ओ हीर मेरी तू हँसती रहे
तेरी आँख घड़ी भर नम ना हो |
मैं मरता था जिस मुखड़े पे
कभी उसका उजाला कम ना हो ||
ओ माई मेरी क्या फिक्र तुझे
क्यूँ आँख से दरिया बहता है |
तू कहती थी तेरा चाँद हूँ मैं
और चाँद हमेशा रहता है ||
तेरी मिट्टी में मिल जावाँ...||

- मनोज मुंतशिर

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